अशोक गहलोत होंगे विपक्ष का चेहरा?


 देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी का दर्जा प्राप्त कांग्रेस अब हाशिए पर आ गई है। लगातार राज्य की सत्ता से सिमटती हुई कांग्रेस अब अपने अस्तित्व को बचाने की जद्दोजहद में लगी हुई है। कांग्रेस के कद्दावर नेता कांग्रेस छोड़कर दूसरी राजनीतिक पार्टियों का हाथ थाम रहे हैं या अपनी ही पार्टी बनाने को लेकर कोशिशें कर रहे हैं। कांग्रेस पर भारतीय जनता पार्टी लगातार परिवारवाद का आरोप लगाकर उसे कठघरे में खड़ी करती आई है और कांग्रेस इस परिवारवाद के धब्बे को धोने में असफल भी साबित हुई है। कांग्रेसी कमान कभी सोनिया गांधी तो कभी राहुल गांधी के हाथों में ही पिछले दो दशकों से नजर आ रही है और इसी का फायदा दूसरी राजनीतिक पार्टियों के साथ बीजेपी भी लेने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ती। केंद्र में पिछले 8 सालों से नरेंद्र मोदी की सरकार है और बीजेपी लगातार एक के बाद एक राज्यों में भी अपनी सत्ता कायम करने में सफल हो रही है। हिंदूवादी छवि को लेकर देश के हर चुनाव में अपनी विजय पताका फहराने में सफल साबित हो रही है। सोशल मीडिया का प्लेटफार्म हो, समाचार चैनलों के न्यूज़ रूम में बहस हो या राजनीतिक मंचो पर जनता के सम्मुख अपनी विचारधारा को रखना हो, हर जगह कांग्रेस पर पिछड़ती हुई नजर आ रही है। विपक्ष की ओर से यूपी चुनाव को लेकर एक कोशिश जरूर की गई। एक मंच पर बीजेपी विरोधी पार्टियों का आना उतना सफल नहीं हो पाया, जितना इन पार्टियों ने सोचा था। कमान अखिलेश ने जरूर संभाली मगर चुनावी नतीजे उलट नजर आये और कांग्रेस की हालत तो और ज्यादा दयनीय नजर आई। एक-एक करके राज्यों में सिमटती कांग्रेस की कमान संभालने के लिए राहुल गांधी फिलहाल मूड में नहीं है। भारत की जनता का हाल और नब्ज जानने के लिए भारत जोड़ो यात्रा पर निकले राहुल पार्टी को वापस सिरमौर बनाने की जिम्मेदारी से भागते नजर आ रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस पार्टी की कमान के लिए सबसे मुफीद नाम सामने आया अशोक गहलोत का, लेकिन गहलोत की अपनी मजबूरियां हैं। वो सीएम की कुर्सी और राजस्थान छोड़ना नहीं चाहते, उन्हें मालूम है कि कांग्रेस की कमान जरूर उन्हें मिल जाएगी, लेकिन आजादी के साथ काम करने का मौका शायद उन्हें ना मिल पाए। ऐसे में असफलता ही उनके हाथ लगने के ज्यादा चांस नजर आते हैं, लेकिन गहलोत पुराने खिलाड़ी है फुल टाइम राजनीति करने वाले गहलोत, राजनीति, कूटनीति और संगठन पर पकड़ मजबूत रखने की महारत रखते हैं। जब गहलोत ने देखा कि उनको पार्टी की प्रॉक्सी कमान और सचिन पायलट को राजस्थान की बागडोर मिलने वाली है, तो फिर शुरू होता है राजनैतिक ड्रामा। 
और फिर गहलोत जाते हैं जैसलमेर के तनोट और पीछे से शांति धारीवाल की कोठी पर होती है जादूगरी। गहलोत को इसके लिए 10 जनपथ की नाराजगी सहनी पड़ती है, पर सीएम की कुर्सी वो बचा लेते हैं और पार्टी की कमान मिलती है मल्लिकार्जुन खड़गे को। पर ये हो गई पुरानी बात...
 फिलहाल सचिन पायलट, गहलोत के लिए परेशानी का सबब बने हुए हैं। राजस्थान में पार्टी दो गुटों में बंटी हुई नजर आ रही है। एक तरफ सचिन, सभ्यता और मर्यादा के साथ अशोक गहलोत को घेर रहे हैं, और पेपर लीक मामले में गहलोत की जादूगरी जनता को बता रहे हैं,
तो गहलोत ने भी सचिन को आइना दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ा। उन्होंने तो इशारों-इशारों में सचिन को कोरोना की संज्ञा दी डाली। राजस्थान में दो धुरों में बंटी कोंग्रेस अपना ही नुकसान कर रही है। राहुल-सोनिया-प्रियंका सहित राजनैतिक धुरन्धर इसका रास्ता निकालने चाहते हैं, पर निकल नहीं पा रहा है। खैर... इसे वक़्त पर छोड़ते हैं। 
पर राजनीतिक धुरन्धरो का मानना है कि नरेंद्र मोदी के सामने अशोक गहलोत ही विपक्ष मजबूत चेहरा हो सकते हैं। आप क्या सोचते है, आपकी क्या राय है, कृपा कर अपनी राय कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं.... 
-दुर्गेश एन. भटनागर

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