क्या होंगे हरियाणा चुनाव के नतीजे...
ये इन बातों पर करेगा निर्भर...
क्या बीजेपी कम कर पायेगी "एन्टी-इनकंबेंसी" ?
क्या जनता की नजरों में खरे उतर पाए नायब सिंह सैनी?
मनोहर लाल खट्टर फैक्टर का बीजेपी को कितना नुकसान?
कांग्रेस और आप पार्टी का गठबंधन न हो पाने में किसका फायदा?
जेजेपी और चंद्रशेखर आजाद के गठबंधन का समीकरण, किसको फायदा किसको नुकसान?
क्या हरियाणा का चुनाव बंटेगा जाट वर्सेज गैर जाट में?
क्या जाट, ओबीसी की राजनीति में अनुसूचित जाति टुइस्ट करेगी जीत?
किसान और किसान आंदोलन का कितना होगा प्रभाव?
न्यूज़ 75,19 सितम्बर। हरियाणा विधानसभा चुनाव (#assembly election, #Haryana election) 2024 में राजनीतिक गतिविधियां तेजी से बढ़ रही हैं। चुनाव 5 अक्टूबर को एक चरण में होंगे, और 8 अक्टूबर को मतगणना होगी। राज्य में कुल 90 सीटों के लिए मतदान होगा, और प्रमुख राजनीतिक दलों के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा देखने को मिल रही है।
हरियाणा विधानसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच माना जा रहा है। हालांकि, चुनावी समीकरण लगातार बदल रहे हैं। बीजेपी अपने दम पर चुनाव लड़ रही है, लेकिन उसे चेहरे की कमी का सामना करना पड़ रहा है, जबकि कांग्रेस के पास भूपेंद्र सिंह हुड्डा जैसे बड़े जाट नेता का समर्थन है। कांग्रेस ने लोकसभा चुनावों में अपनी स्थिति मजबूत की थी, जिससे उसकी विधानसभा में भी बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है।
भारतीय जनता पार्टी इस बार तीसरी बार सत्ता में आने का प्रयास कर रही है, जबकि कांग्रेस अपनी खोई हुई ज़मीन को वापस पाने की कोशिश में है। कांग्रेस के भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनकी टीम पर चुनावी रणनीति की जिम्मेदारी है। राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी हरियाणा की राजनीति को कांग्रेस के फेवर में करने के लिए पहुंच गए हैं उन्हें कांग्रेस ने चुनाव की कमान दी है। कांग्रेस (#Congress) इस चुनाव में 7 गारंटीयों के साथ जनता के सामने है हरियाणा की जनता में गारंटी ऊपर कितना विश्वास करती है यह तो चुनाव परिणाम पर ही पता चल पाएगा, लेकिन इस चुनाव में कांग्रेस में अब तक कई प्रमुख चेहरों को उम्मीदवार बनाया है, जिनमें पहलवान विनेश फोगाट शामिल हैं, जो जुलाना से चुनाव लड़ रही हैं। वहीं भाजपा ने जुलाना से कैप्टन योगेश बैरागी को मैदान में उतारा है।
आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच सीट-बंटवारे पर सहमति नहीं बन सकी, जिसके कारण दोनों दल स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ रहे हैं। आम आदमी पार्टी ने सभी 90 सीटों पर उम्मीदवार उतार दिए हैं, जो कांग्रेस के लिए चुनौती पैदा कर सकते हैं। कांग्रेस और आप का गठबंधन नहीं हो पाया, जिससे विपक्षी वोट बंट सकते हैं और इसका सीधा फायदा बीजेपी को हो सकता है। आप कांग्रेस और भाजपा के मुकाबले नया विकल्प बनने की कोशिश में है।
वहीं, इनेलो और अन्य क्षेत्रीय दल भी अपने-अपने गठबंधन और प्रचार अभियानों के जरिए लड़ाई को दिलचस्प बना रहे हैं।
ऐसे में, कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधी टक्कर है, लेकिन छोटे दलों और गठबंधनों का प्रभाव भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
दिल्ली शराब नीति मामले में अरविंद केजरीवाल की हाल ही में जमानत और उनके दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के कदम ने हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी को बड़ा बढ़ावा और मजबूती दी है। विवादास्पद कानूनी लड़ाई के बाद रिहा हुए केजरीवाल अब हरियाणा में आप के अभियान का नेतृत्व करने के लिए तैयार हैं। इस घटनाक्रम ने आप कार्यकर्ताओं और नेताओं में जोश भर दिया है, जो इसे नैतिक जीत और राज्य में अपने चुनावी प्रयासों को तेज करने का मौका मानते हैं।
आप, जो हरियाणा में सभी 90 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, ने अपने "केजरीवाल की 5 गारंटी" अभियान के हिस्से के रूप में मुफ्त बिजली, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा जैसी प्रमुख जन-केंद्रित पहलों पर जोर दिया है। अभियान में केजरीवाल के नेतृत्व से सत्तारूढ़ भाजपा और कांग्रेस दोनों को चुनौती मिलने की उम्मीद है, जिसमें आप खुद को एक नए विकल्प के रूप में पेश करेगी। पंजाब के सीएम भगवंत मान जैसे लोगों के महत्वपूर्ण समर्थन के साथ, पार्टी का लक्ष्य निराश मतदाताओं, खासकर जेजेपी और आईएनएलडी को अपने पाले में करना है।
यह चुनाव आप के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि वह दिल्ली और पंजाब से आगे अपना प्रभाव बढ़ाना चाहती है तथा हरियाणा में मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए केजरीवाल के नेतृत्व और शासन में पार्टी के ट्रैक रिकॉर्ड का लाभ उठाना चाहती है।
हरियाणा चुनाव में चंद्रशेखर आजाद की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है। उन्होंने अपनी पार्टी, आजाद समाज पार्टी (#ASP), को दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी (#JJP) के साथ गठबंधन में शामिल किया है। इस गठबंधन के तहत जेजेपी 70 सीटों पर और एएसपी 20 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। यह गठबंधन विशेष रूप से किसानों और दलित समुदायों की आवाज को प्रमुखता देने के लिए बना है, जिनका हरियाणा की राजनीति में बड़ा प्रभाव है।
चंद्रशेखर आजाद ने कहा है कि वे और दुष्यंत चौटाला मिलकर हरियाणा में किसानों के मुद्दों और शिक्षा के सुधार के लिए काम करेंगे। उन्होंने भरोसा जताया कि यह गठबंधन हरियाणा में एक नए युग की शुरुआत करेगा। दलितों और किसानों के समर्थन पर जोर देते हुए, उन्होंने भाजपा और कांग्रेस के खिलाफ एक सशक्त तीसरे मोर्चे की संभावना को मजबूत किया है।
इस चुनाव में जातिगत समीकरण भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे, खासकर जाट समुदाय पर सभी दलों की नजरें टिकी हैं। भाजपा गैर-जाट उम्मीदवारों को आगे कर रही है, जबकि कांग्रेस जाट वोटों को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रही है, हालांकि मतदाताओं के बीच जातीय राजनीति की पकड़ कुछ हद तक कमजोर हुई है। फिर भी, राजनीतिक दलों ने जातीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए अपने उम्मीदवारों का चयन किया है।
कांग्रेस ने अपनी रणनीति में सबसे अधिक जाट समुदाय पर ध्यान केंद्रित किया है, 90 में से 35 उम्मीदवार जाट समुदाय से हैं। इसके अलावा, ओबीसी समुदाय से 20 उम्मीदवार और अनुसूचित जाति से 17 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। कांग्रेस के इस कदम से जाट और ओबीसी मतदाताओं को साधने की कोशिश की जा रही है, जो राज्य के कुल मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा हैं।
भाजपा ने भी जातीय समीकरणों को साधने की पूरी कोशिश की है। पिछली बार पार्टी को जाट समुदाय से चुनौती मिली थी, लेकिन इस बार पार्टी ने जाट और गैर-जाट वोट बैंक में संतुलन बनाने का प्रयास किया है। 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 40 सीटें जीती थीं, लेकिन उसे जेजेपी के साथ गठबंधन करके सरकार बनानी पड़ी थी। इस बार भी भाजपा जातिगत समीकरणों के आधार पर गठबंधन की रणनीति पर काम कर रही है।
यह देखा जा रहा है कि चुनाव में जाट और ओबीसी समुदाय के साथ-साथ अनुसूचित जाति और अन्य छोटे समुदायों का वोट बैंक भी निर्णायक साबित हो सकता है।
इस चुनाव के परिणाम न केवल हरियाणा की राजनीति बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी प्रभाव डाल सकते हैं, क्योंकि राज्य की राजनीतिक स्थिति कई मायनों में भाजपा और विपक्षी दलों के लिए महत्वपूर्ण है।