"एक देश, एक चुनाव"

 

"एक देश, एक चुनाव" 

भारत सरकार द्वारा "एक देश, एक चुनाव" (One Nation, One Election) का प्रस्ताव हाल ही में केंद्रीय कैबिनेट द्वारा स्वीकृत किया गया है, जिसका उद्देश्य लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ कराना है। इस योजना का आधार एक उच्च-स्तरीय समिति की सिफारिशें हैं, जिसका नेतृत्व पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने किया। समिति का मानना है कि बार-बार होने वाले चुनावों से नीतिगत निर्णयों में देरी होती है और संसाधनों की भारी बर्बादी होती है।


पहली बार 1951-1967 के बीच एक देश एक चुनाव व्यवस्था लागू रही-


यह योजना पहली बार 1951-1967 के बीच लागू की गई थी, लेकिन राज्यों के चुनावी चक्र बदलने के बाद इसे अलग-अलग समय पर कराया जाने लगा। अब इसे दो चरणों में लागू करने की सिफारिश की गई है: पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ में होंगे, और दूसरे चरण में स्थानीय निकाय चुनाव (जैसे पंचायत और नगरपालिकाएं) होंगे, जिन्हें 100 दिनों के भीतर संपन्न किया जाएगा।

सरकार के अनुसार, इससे न केवल खर्चों में कमी आएगी, बल्कि प्रशासनिक कार्यों में भी सुधार होगा। हालांकि, इस पर विपक्ष और कई विशेषज्ञों ने आपत्ति जताई है, यह कहते हुए कि देश की विविधता को देखते हुए इसे लागू करना व्यावहारिक नहीं है।


यह प्रस्ताव संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में पेश होने की संभावना है और इसके लिए कई संवैधानिक संशोधनों की आवश्यकता होगी।


एक देश, एक चुनाव से फायदा-


"एक देश, एक चुनाव" का मतलब है कि पूरे देश में लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएं। इससे कई फायदे हो सकते हैं:


1. खर्च की बचत: बार-बार चुनाव कराने में बहुत धन खर्च होता है। एक साथ चुनाव होने से चुनावी खर्च में कमी आएगी।


2. प्रशासनिक सुविधा: चुनाव के दौरान बड़ी संख्या में सुरक्षा बलों और अन्य सरकारी संसाधनों की आवश्यकता होती है। एक बार में चुनाव कराने से प्रशासनिक बोझ कम होगा।


3. निरंतर विकास कार्य: बार-बार चुनाव होने से सरकारें चुनावी आचार संहिता के कारण विकास कार्यों को धीमा कर देती हैं। अगर सभी चुनाव एक साथ हों, तो लंबे समय तक विकास कार्य बिना किसी रुकावट के चल सकते हैं।


4. राजनीतिक स्थिरता: बार-बार चुनावी प्रक्रिया के कारण राजनीतिक अस्थिरता पैदा होती है। एक साथ चुनाव होने से देश में राजनीतिक स्थिरता बनी रह सकती है।


5. मतदाताओं की भागीदारी में सुधार: एक ही समय में सभी चुनाव होने से मतदाता को बार-बार चुनाव में भाग नहीं लेना पड़ेगा, जिससे उनकी भागीदारी बढ़ सकती है।


हालांकि, इसे लागू करने में कई चुनौतियां भी हैं, जैसे संविधान में बदलाव, क्षेत्रीय मुद्दे, और राजनीतिक दलों के मतभेद।



एक देश, एक चुनाव से नुकसान-


"एक देश, एक चुनाव" (One Nation, One Election) की अवधारणा का उद्देश्य केंद्र और राज्य सरकारों के चुनावों को एक साथ कराना है। इसके संभावित नुकसान निम्नलिखित हो सकते हैं:


1. संवैधानिक और प्रशासनिक चुनौतियाँ: देश के विभिन्न राज्यों में सरकारों का कार्यकाल अलग-अलग होता है। अगर चुनाव एक साथ कराए जाते हैं, तो इन सरकारों को कार्यकाल समाप्त होने से पहले भंग करना पड़ सकता है, जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए अनुचित हो सकता है।


2. क्षेत्रीय मुद्दों की अनदेखी: अगर राज्य और केंद्र दोनों के चुनाव एक साथ होंगे, तो राष्ट्रीय मुद्दे क्षेत्रीय मुद्दों पर हावी हो सकते हैं। इससे राज्य के मुद्दे चुनावी चर्चा से बाहर रह सकते हैं।


3. अचानक राजनीतिक अस्थिरता: अगर किसी राज्य की सरकार बीच में गिरती है, तो उस राज्य में फिर से चुनाव कराने की जरूरत पड़ेगी। यह "एक देश, एक चुनाव" के सिद्धांत को बाधित कर सकता है और चुनावी खर्चों में वृद्धि कर सकता है।


4. चुनावी खर्च में कमी का दावा: हालांकि यह दावा किया जाता है कि इससे चुनावी खर्च कम होगा, लेकिन एक साथ चुनाव कराने के लिए एक बड़ा प्रशासनिक ढांचा और सुरक्षा बलों की बड़ी तैनाती की जरूरत होगी, जिससे खर्च में कमी उतनी प्रभावी नहीं हो सकती।


5. स्थानीय दलों पर असर: एक साथ चुनाव होने पर राष्ट्रीय दलों को फायदा हो सकता है, जबकि क्षेत्रीय दलों की भूमिका सीमित हो सकती है, जिससे लोकतंत्र की बहुलवादी प्रकृति पर असर पड़ सकता है।


6. विकास कार्यों पर रोक: चुनावों के दौरान आदर्श आचार संहिता लागू होती है, जिससे सरकारी कार्यों और नीतियों पर अस्थायी रोक लग जाती है। अगर सारे चुनाव एक साथ होंगे, तो यह लंबे समय तक विकास कार्यों को प्रभावित कर सकता है।


ये संभावित नुकसान बताते हैं कि "एक देश, एक चुनाव" का विचार कई जटिलताओं और चुनौतियों से भरा हुआ है।



एक देश, एक चुनाव के लिए संविधान में कौन से बदलाव की होगी जरूरत-


"एक देश, एक चुनाव" (One Nation, One Election) की अवधारणा को लागू करने के लिए भारत के संविधान में कई संशोधन करने की आवश्यकता होगी। इस अवधारणा के तहत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएंगे। इसके लिए निम्नलिखित संविधान संशोधनों की आवश्यकता हो सकती है:


1. लोकसभा और विधानसभाओं के कार्यकाल में बदलाव: संविधान के अनुच्छेद 83 और 172 के अनुसार, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल पाँच वर्ष का होता है। यदि "एक देश, एक चुनाव" लागू करना है, तो चुनाव एक साथ कराने के लिए इनका कार्यकाल संशोधित करना होगा। ऐसा करने के लिए कुछ विधानसभाओं या लोकसभा का कार्यकाल छोटा या बड़ा करना पड़ेगा।


2. अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन): यदि किसी राज्य की विधानसभा भंग होती है या अस्थिरता उत्पन्न होती है, तो अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लागू किया जाता है। "एक देश, एक चुनाव" की स्थिति में, ऐसा न हो सके इसके लिए राष्ट्रपति शासन की अवधि और विधानसभा के भंग होने के नियमों में संशोधन करना होगा।


3. संविधान की अनुसूची X में बदलाव (दल बदल कानून): दल बदल के कारण विधानसभाओं में अस्थिरता उत्पन्न होती है। इसके समाधान के लिए दल बदल कानून में सख्त प्रावधान किए जा सकते हैं ताकि विधानसभाओं का कार्यकाल स्थिर रह सके।


4. चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र में विस्तार: "एक देश, एक चुनाव" को सफलतापूर्वक लागू करने के लिए चुनाव आयोग के पास अधिक शक्तियां और संसाधन होने चाहिए, जिससे कि वह इस प्रक्रिया का समन्वय कर सके।


5. विशेष परिस्थिति के लिए व्यवस्था: अगर किसी कारण से सरकार गिर जाती है या असमय चुनाव की आवश्यकता होती है, तो इसके लिए विशेष संवैधानिक प्रावधान किए जा सकते हैं, ताकि निर्धारित समय तक अंतरिम व्यवस्था कायम रखी जा सके और चुनाव एक साथ कराए जा सकें।


अन्य कानूनी और प्रशासनिक चुनौतियाँ: इसके अलावा, देशभर में चुनावों के लिए संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित करने, चुनावी प्रक्रिया को सुचारू रूप से चलाने, और सभी हितधारकों को साथ लेकर चलने के लिए अन्य कानूनी और प्रशासनिक बदलाव भी आवश्यक होंगे।


"एक देश, एक चुनाव" लागू करना एक जटिल प्रक्रिया है जो संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों और व्यवस्थाओं में बदलाव की मांग करेगा, जिससे कि भारत की संसदीय और संघीय ढांचे के तहत इसे प्रभावी रूप से लागू किया जा सके।





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