अब देश की राजनिती में एक नई टोपी देखने को मिल रही है, रंग नारंगी कहना उतना भारी नहीं रहेगा जितना इस नई टोपी के रंग को भगवा कहना। भगवा रंग से ही आप समझ गए होंगे, हम किस टोपी और किस पार्टी की बात कर रहे हैं, जी हाँ, ठीक पहचाना आपने, विश्व की सबसे बड़ी पार्टी होने का दम्भ भरने वाली पार्टी बीजेपी यानी भारतीय जनता पार्टी की।
अमूमन अब तक बीजेपी के नेता और कार्यकर्ता भगवा गमछे से ही काम चला लिया करते थे। पर गुजरात चुनाव से ठीक पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चुनाव प्रचार में इस नई टोपी के इस्तेमाल से भाजपाइयों को भी सिर ढकने का मौका मिल गया है।
ये टोपी ऐसी वैसी टोपी नहीं है, इस टोपी का रंग, कलेवर, डिजाइन और सजावट कई संदेश देते है और आपको तो मालूम ही है हमारे प्रधानमंत्री जी संदेश देने का कोई मौका नहीं छोड़ते। और गुजरात चुनाव के परिणामों ने कई चीजें साफ कर ही दी है, साथ ही कई संदेश भी दिए हैं। खैर.... इस पर फिर कभी ओर बात करेंगे।
बात टोपी की चली है तो टोपी के संदेश को जानना जरूरी है।ओहो... टोपी नहीं भगवा टोपी.... तो इस भगवा टोपी का रंग बताता है कि इसको पहनने वाले हिंदूवादी हैं, भगवा रंग राष्टवाद से भी जुड़ा है, तो पहनने वाला राष्टवादी तो होगा ही। रही बात टोपी की सजावट की तो टोपी पर है एक तिरछी लाइन में लगी है चमकती सुंदर सी लेस, ये भी दो संदेश देती है, पहला संदेश देती है इसकी चमक, संपन्नता का... भाई... शहरी और व्यापारियों की पार्टी मानी जाती है बीजेपी तो संपन्नता दिखाई देनी ही चाहिए, आप इसे बामण-बनियों और जनरल वालों की पार्टी मत समझियेगा, कभी हुआ करती होगी पर अब तो 36 कौमो और चारों वर्गो और जितने भी समुदाय होते हैं उन सभी समुदायों की पार्टी है। आपको बताता चलु हमारे प्रधानमंत्री जी ओबीसी से आते हैं... और हैं खालिस गुजराती मानुष... गुजराती मानुष से याद आया कि इन मानुषों की तो लाइन लगी हुई है। गांधीजी गुजराती मानुष, लौहपुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल गुजराती मानुष, अपने मोटा भाई अमित शाह जी गुजराती मानुष, अडानी-अम्बानी जी भी गुजराती मानुष... और इनको लेकर तो खूब टोपियां उछाली जा रही है... भई राजनीति में तो होता ही है इसकी टोपी उसके सर... खैर... इस पर कभी और बात करेंगे...
बात टोपी की चल रही है तो मैं आपको बताता चलूं कि आजादी की लड़ाई के दौरान मोहनदास करमचंद गांधी यानी अपने गांधीजी...और जब उन्होंने सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया था, तब शांति और अहिंसा के प्रतीक सफेद रंग के लिबास को अपनाया गया। तभी से आंदोलन से जुड़े स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों ने सिर पर सफेद टोपी पहनने की शुरुआत की थी। बाद में यही नेताओं की पोशाक का हिस्सा हो गई और टोपी का नाम 'गांधी टोपी' पड़ गया।
अब बात आती है कि इस गांधी टोपी को किसने डिजाइन किया था ?
तो आपको सुनी सुनाई बात बता दूं कि गांधीजी ने काका कालेलकर के साथ बातचीत में ये बताया कि उन्होंने गांधी टोपी कैसे बनाई। गांधी जी ने उनको बताया कि उन्होंने भारत के विभिन्न इलाकों की कई टोपियां देखीं और वो एक ऐसी टोपी डिजाइन करना चाहते थे जो गर्मी के मौसम में सिर को ढक सके और ऐसी हो कि जेब में रखना भी आसान हो... तो हो गया ईजाद गांधी टोपी का।
गांधी टोपी भारत में 1918 से 1921 के दौरान पहले असहयोग आंदोलन के दौरान उभरी और गांधीजी ने इस टोपी को कांग्रेस की पोशाक का हिस्सा बना दिया। जब ये लोकप्रिय हुई तो 1921 में, ब्रिटिश सरकार ने गांधी टोपी के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास भी किया। पर मजे की बात ये है कि स्वयं गांधी ने साल 1920-21 के दौरान केवल एक या दो साल के लिए ही ये टोपी पहनी थी। ओह हो... कितना ज्ञान बांट दिया। बहुत ही गई ज्ञान की बात, अब मुद्दे पर फोकस करते हैं-
तो सौ बात की एक बात... मोदीजी ने अच्छे-अच्छों को टोपी पहना दी है...अरररर्र.... गलत मतलब मत निकालिये... मेरा कहने का मतलब है कि मोदीजी के भगवा टोपी पहनने से भाजपाइयों का ये ड्रेसकोड हो गया है। तो अब भाजपा के नेता कार्यकर्ताओं को पहनाएंगे टोपी... मतलब भगवा टोपी....।
-आपका अपना दुर्गेश एन. भटनागर